Saturday 20 August 2022

राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया पर सवालिया निशान?

 Public Interest Litigation जनहित याचिका


18 अगस्त 2022

भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश के सम्मुख जनहित याचिका हेतु 

                         खुला पत्र


माननीय भारत के मुख्य न्यायाधीश,

सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली।

द्वारा - उचित माध्यम


विषय--राष्ट्रपति  चुनाव की प्रक्रिया पर सवालिया निशान?


माननीय मुख्य न्यायाधीश जी,

                   विवेक स्पर्श,

           अनुरोध , आग्रह के साथ अपेक्षा है कि क्या आप मेरे इस खुले पत्र को , भारत के संविधान में संप्रभुजनों को प्रदत समानता के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए उसके घोर एवं व्यापक उल्लंघन को रोकने के लिए , जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करना चाहेंगे ? 


       सन 2007, 2017, 2022 में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लिया यह सोच कर कि  MSc , M Phil,  PhD (Mathematics) IIT Kanpur से कर आचार्य गणित के रूप में अनुभव प्राप्त करने के बाद राष्ट्रहित में अपने अनुभवों को क्रियान्वित करने के लिए स्थानीय मान प्राप्त किया जाए। सोचा राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के पद खाली हो रहे हैं प्रयास किया जाए। जो अनुभव प्राप्त हुए हैं उनको मैं साझा करना चाहता हूं एक साधारण संप्रभु जन होने के नाते एक संप्रभु जन से जो आज की तारीख में भारत के मुख्य न्यायाधीश भी है। मेरी पीड़ा प्रतीकात्मक रूप से उस जन-जन की पीड़ा है जिसके मन में कुछ करने की चाह है और जलते हुए हमारे राष्ट्र को बचाना चाहता है। मानवता कराह रही है बच्चे जवानी से पहले बुढ़ापे में प्रवेश कर रहे हैं मुट्ठी भर लोग अपने घर में बाकी किराएदार या फुटपाथ पर हैं हर घर में बेरोजगार धरना प्रदर्शन आम बात हो गई है ऐसे में खामोश बैठना भी  एक जघन्य अपराध है। राष्ट्रपति का पद सर्वोपरि है इसे प्राप्त करने की इच्छा हर एक के मन में होनी चाहिए इसे प्राप्त करना हर भारतीय का, विशेषकर आपका भी , सपना होना चाहिए। सेवानिवृत्ति के बाद तो हर भारत के मुख्य न्यायाधीश को जो न्याय का पितामह होता है राष्ट्रपति बनना ही चाहिए लेकिन मौजूदा पारंपरिक प्रक्रिया में उसे राष्ट्रपति की भूमिका अदा करने का अवसर शायद ही प्राप्त हो सके। 

       इसी भाव को लेकर 2007 में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति पद के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया में पहल की । तब से लेकर अब तक  जो अनुभव प्राप्त हुए उसका विवरण मुख्य बिंदु संक्षेप में निम्नलिखित हैं---

१- राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने के लिए 50 प्रस्तावक 50 समर्थक न होने के कारण सभी न्यूनतम अर्हताऐं होने के बावजूद भी मेरे साथ अधिकांश संप्रभुजन के नामांकन पत्र जांच उपरांत निरस्त कर दिए गए। स्वभाविक भी है। प्रस्तावकों एवं समर्थकों की संख्या अत्यधिक होने के कारण कोई भी संप्रभु जन राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति बनने के लिए सपने में भी नहीं सोच सकता ।

 इस बार मैंने सोशल मीडिया के माध्यम से जन आंदोलन चलाकर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्त पात्रों की तलाश की । पर कोई भी आगे नहीं आया यहां तक की स्वयं तत्कालीन राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी, उपराष्ट्रपति श्री वेंकैयानायडू जी , भी नहीं जबकि दोनों के पास पांच 5 वर्ष का राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति का अनुभव था। क्या पांच 5 साल का अनुभव उनके लिए अयोग्यता हो गई थी ? इस संदर्भ में 2017 में राष्ट्रपति पद के 7/8 नामांकित प्रत्याशियों को लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त के प्रतिनिधि उप मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ उमेश सिन्हा जी  से मिला था वार्ता के तमाम विंदुओं में से एक सवाल क्या आप या आपकी संताने या आपके माता पिता यदि राष्ट्रपति बनना चाहे तो क्या इस प्रक्रिया के माध्यम से बन सकते हैं जिसे आप द्वारा अपनाई जा रही है ? आपके मन में तो उस समय यह भाव होना ही चाहिए जब आपके द्वारा हस्ताक्षरित चुने हुए निर्वाचित राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति का पत्र जारी किया जाता है। कोई जवाब नहीं था उनके पास। मौन स्वीकृति।

२- भारत के राष्ट्रपति का चुनाव अपरोक्ष रूप में जनता के द्वारा होता है 1971 से लेकर  2022 तक भारत के राष्ट्रपतियों के सभी चुनाव 1971 की आबादी पर हुए। उस समय भारत की आबादी आधार वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर 54,93,02005 थी। 1981, 1991, 2001 , 2011 एवं 2021को आधार वर्ष मानकर राष्ट्रपति पद हेतु कभी भी कोई भी चुनाव नहीं हुआ 2001 में 125 करोड़ ,2011 में 130 करोड़ और 2021 में 135  करोड़ से अधिक आबादी थी इस कारण 2002 एवं 2007 के राष्ट्रपति के चुनाव में 70 करोड, 2012 एवं 2017 के राष्ट्रपति के चुनाव में 75 करोड़ एवं 2022 के चुनाव में 80 करोड़ आवादी को राष्ट्रपति के चुनाव में शामिल ही नहीं किया गया। 1981 के बाद होने वाले सभी राष्ट्रपति के चुनाव पर सवालिया निशान स्वाभाविक है, मौलिक है ,वास्तविक है ,संवैधानिक है।

३- तथाकथित लोकतंत्र/जनतंत्र में भ्रष्ट नौकरशाही तंत्र पर सवार दलतंत्र को चलाया जा रहा है  दलों को मान्यता देना ही लोकतंत्र की भ्रूण हत्या है। वास्तव में लोकतंत्र पूरे विश्व में कहीं भी गर्भावस्था में भी नहीं है । इस पर भी मुख्य चुनाव आयुक्त के प्रतिनिधि से वार्ता हुई थी उन्होंने मौन स्वीकृति दी थी। लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए, अस्तित्व में लाने के लिए उसका जन्म होना बहुत जरूरी है कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका में से एक न्यायपालिका लोकतंत्र का स्तंभ कैसे हो सकता है जबकि उसका अभी जन्म ही नहीं हुआ है ? मीडिया "समाचार जगत" तो बेहोशी में ही लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है और जो सबसे ज्यादा भ्रम पैदा करता रहता है जिसकी वजह से हमारे राष्ट्र की अपूरणीय क्षति हो रही है आप इसको कैसे रोकेंगे मुख्य न्यायाधीश जी ?

४-हमारे देश में हो रहे किसी भी चुनाव की जानकारी समय से मतकर्ता ,मतदाता सहित प्रत्येक व्यक्ति को लिखित रूप से उपलब्ध कराई जानी चाहिए टीवी अखबारों के माध्यम से अधिसूचना जारी किए जाने के तुरंत बाद चुनावी प्रक्रिया का शुरू करना मतदाताओं को धोखे में रखना है आज तक राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति एमएलए एमपी एमएलसी आदि के चुनाव की अधिसूचना की जानकारी लिखित रूप में किसी को भी नहीं दी गई है अधिसूचना कभी भी सर्विस नहीं की गई है मतदाताओं को। मतदाता सूचियां तक सही नहीं बन पाई। मतदाता- वोट डोनर, मतकर्ता - वोटर दोनों अलग हैं यहां कोई मतदाता है ही नहीं विचारधान नहीं हो रहा है ठप्पा दान हो रहा है बटन दबान हो रहा है किसी भी मतकर्ता को यह नहीं पता है कि हमारे यहां कितने प्रत्याशी खड़े हैं? उनके नाम क्या हैं? उनके बारे में जानकारी नहीं है बस मतदान हो रहा है इत्यादि बहुत सारे ऐसे बिंदु हैं जिन पर प्रकाश डाला जा सकता है।


           प्रार्थना


       उपरोक्त बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए अनुरोध है कि मुझे अपना पक्ष आपके सम्मुख प्रस्तुत करने के लिए अवसर दिया जाए ताकि प्रतीकात्मक रूप से भारत वासियों के मन की पीड़ा प्रस्तुत कर  सकूं। संविधान सम्मत मौलिक अधिकारों के होने वाले घोर एवं व्यापक उल्लंघन को रोका जा सके।

     1982 के बाद से लेकर  2022 तक बीच के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों को निरस्त किया जाए । उनके द्वारा की गई नियुक्तियां आदेश निरस्त किए जाएं। लिए गए लाभ वसूल किए जाएं। राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त सभी प्रधानमंत्री , मंत्री, सभी राज्यपाल , राज्यपालों द्वारा नियुक्त सभी मुख्यमंत्री, सभी मंत्री, सभी चुनाव आयुक्त सभी न्यायाधीश आदि आदि निरस्त किए जाए। यह सब एक छोटी सी त्रुटि के कारण हुआ है चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के चुनाव के समय रहते आधार वर्ष बदलते रहना चाहिए था। 

       जब स्पेलिंग मिस्टेक पर चुनाव में नामांकन पत्र निरस्त हो सकते हैं तो यह तो बहुत बड़ी मिस्टेक है राष्ट्रहित में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

      मेरा भाव- राष्ट्र बचाव। अन्यथा इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।

 नोट निर्णय लेने से पहले कृपया

                  Visit the website 

www.newindianconstitution.org 

Of Thomas Jacob Ved Prakash 

    इस वेबसाइट को रोकने के लिए मेरे अथक प्रयास निरर्थक।


आवेदक,


डॉ विजय नारायण पाल,

एक साधारण भारतीय संप्रभु जन,

विश्वविद्यालय आचार्य गणित,

भूतपूर्व छात्र आईआईटी कानपुर,

123, "अपना घर राष्ट्र घर"

 रामगंगा हाउसिंग कंपलेक्स जीटी रोड नारामऊ/मंधना 

 कानपुर नगर-उत्तर प्रदेश - पिन कोड   209217

मो नंबर 70079 67764

ईमेल pmdrvnpalcm13@gmail.com

Sunday 19 April 2020

"सम्पूर्ण अव्यवस्था परिवर्तन अभियान "
के अंतर्गत
"आर्थिक आजादी आंदोलन "----
आ जाओ गुरु के हाते में
एक खोखा सबके खाते में ।
गुरु जी का जोड़-
कम से कम 13 करोड़,
आइए पाये एक करोड़ ,
गर्भवती महिलाओं को दो करोड़ -
कैसे ? ---ऐसे --
मान सिंह -शिष्य
7007967764
विश्व के समस्त सांसधारी प्राणियों को-भोजन, भरण, मैथुन, शरण की आजीवन सुविधा-वो भी बिना किसी भेदभाव के-लिखित रूप मे आवेदन कर मिलिए, और सबकुछ मनचाहा प्राप्त करिये।
डॉ ( विजय नारायण ) "पाल" संस्थापक सूत्रधारक
"सम्पूर्ण अव्यवस्था परिवर्तन अभियान"
"सम्पूर्ण अव्यवस्था परिवर्तन अभियान" के अंतर्गत
"आर्थिक आजादी आंदोलन "
आ जाओ गुरु के हाते में,एक खोखा सबके खाते में,-
एक-शिष्य
"आर्थिक आजादी आंदोलन"-गुरु जी का जोड़-कम से कम 13 करोड़,
आइए पाये एक करोड़ ,गर्भवती महिलाओं को दो करोड़ -एक शिष्य 7007967764





कलयुग समाप्त की ओर -
-सभी मुखातिब हैं - नोबल
को-रोना युग की ओर
'' डॉ पाल "
नोबल को-रोना "को " और "की" की लड़ाई का परिणाम -"डॉ पाल "




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"डॉ पाल "
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"डॉ पाल "
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डॉ पाल

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